Friday, April 10, 2009

या इलाही ये माज़रा क्या है ?

मन कल से बार-बार इलाही माता के चक्कर काट रहा है।
हनुमान जयंती पे लगभग सारा का सारा क़स्बा ही बड़े हनुमान जी के मन्दिर जाता था। बड़ी धूम रहती थी। क़स्बा यानि सीहोर की पुरानी बस्ती। सीहोर के तीन मुख्य हिस्से थे - क़स्बा, छावनी और गंज। हम लोग कस्बे में रहा करते थे। घर से इलाही माता पहुँचने के दो-तीन रास्ते थे पर मुझे नदी किनारे वाला रास्ता ज़्यादा पसंद था। वो थोडा लंबा ज़रूर था लेकिन कच्चे रास्तों, पगडंडियों और झाड़-झंकाड़ के बीच से होते हुए जाना बड़ा मजेदार होता था। सीवन नदी सही मानों में नदी नहीं थी। पंजाब-हरियाणा की नहरों की चौड़ाई उससे कहीं अधिक होती है। लेकिन हमारे लिए तो वोही नदी थी। इसी में हमने पजामे में हवा भर कर तैरना सीखा और यहीं भैंसों की पीठ पे खड़े हो गोते लगाये। इसी की मिट्टी से गणपति की प्रतिमाएँ बनाईं और सावन में इसी की धार में बहते हुए भुजरिया के दोने पकड़े।
इस सीवन नदी के ही एक छोर पर बड़े हनुमान जी का मन्दिर है। ये इलाका कुछ टीले नुमा है, टीले पे शीतला माता का पुराना मन्दिर है। नदी पे एक छोटा बाँध भी यहाँ बंधा हुआ है और इसके आगे क़स्बे की हद ख़त्म हो जाती है। यही इलाका इलाही माता के नाम से जाना जाता है।
अब मैं इसी में अटका हुआ हूँ कि इस नाम के माने क्या ? नदी के इस घाट पे ही ताजिये भी ठंडे किए जाते हैं इसलिए कर्बला भी ये ही है। मैंने तर्क भिड़ाने की कोशिश की कि कर्बला की वजह से "इलाही" और माता के मन्दिर का "माता" मिलाकर शायद इलाही माता बनाया गया हो लेकिन इससे ज़्यादा अपने पल्ले कुछ पड़ा नहीं। और सच कहूं तो तो ख़ुद अपन को ही कुछ जमा नहीं। पास ही ईदगाह भी मौज़ूद है पर इलाही का माता से संगम अपने लिए तो रहस्य ही है। ऐसा नहीं कि यह बात पहले कभी दिमाग में आई हो लेकिन, इतनी शिद्दत से तो कभी नहीं।
लेकिन जो बात ख़ास है वो ये कि माता के बुत की पूजा होने के बावज़ूद
भी "इलाही" वालों के लिये ये जगह हमेशा उतनी ही मुक़द्दस रही और माता के नाम में इलाही जुड़ने से कभी किसी माई के लाल का धर्म भ्रष्ट नहीं हुआ. इस देशमें ऐसी असंख्य चीज़ें, बातें, प्रतीक और बिंब हैं जिनसे हिन्दुस्तान की आत्मा बनती है. यहाँ सभी धर्म, संप्रदाय, वर्ग, समाज और जो भी नाम आप देना चाहें अपना वज़ूद अलग रखते हुए भी एक समग्र समाज की रचना करते हैं. ये तो हनुमान जयंती के बहाने और अपने बचपन की यादों के यूफोरिया में इस बिना बात की बात में मैने इतना कुछ लिख दिया वरना चप्पे-चप्पे पे इससे बड़ी मिसालें आप सब ने देखी हैं जो देश का ताना-बाना बुनती हैं. धर्म के नाम पर इस ताने-बाने को कोई क्या तोड़ पाएगा ? आप तोड़ने देंगे ?

5 comments:

  1. बस एक बार, वह स्थान मैं ने भी देखा है। उस स्थान को देख कर मैं चकित रह गया था। जब नदी का पानी प्रदूषण रहित रहा होगा, तब यह स्थान कितना रमणीक रहा होगा? शायद इसी लिए सारे देवता यहीं विराज रहे हैं।
    मंदिर मस्जिद तो एक साथ पूरे भारत भर में मिलेंगे। एक ही लोक देवता के दो नाम और दो धर्मावलंबियों द्वारा उन्हें मान देना जैसे रामा पीर/रामदेव भी यहीं मिलेंगे। वास्तव में यह देश अद्वैत वेदान्त के अनुयायी निरगुनियों का है। जो हर शै में बृह्म का अंश देखते हैं। सब को सर नवाते हैं। यही वह दर्शन है जो ईसा, मुहम्मद, बुद्ध, राम, कृष्ण, गांधी ही क्या? हर शख्स में बृह्म का अंश देखता है। उस के शब्द कोष में शैतान है ही नहीं। दुनिया को एकता की राह ऐसा ही दर्शन दिखा सकता है।

    भाई, यह शब्द पुष्टिकरण यानी वर्ड वेरीफिकेशन हटाएँ। इस से टिप्पणियाँ आनी बंद रहेंगी।

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  2. आदरणीय द्विवेदी जी,
    आदेश का पालन हुआ। स्नेह बनाए रखें।

    संजय शुक्ल

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  3. मित्र संजय,आपने सही कहा है..इस देस की गंगा-जमुनी संस्कृति रही है और यदि भगवानों को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर गुरुओं को दोनों ही सम्प्रदाय के लोग मानते हैं | हम लोग मरहट्टा हैं..सो हमारा कुनबा हमेशा यहाँ से वहाँ सैन्य बल के संग घूमता रहता था और हमारे पूर्वजों ने अपने कुलदेवता के रूप में एक मुसलमान गुरु बाबा को अपनाया था!! अजमेर शरीफ से लगाकर ऐसे सैकडों उदाहरण हैं..आपने सही फ़रमाया| जब भक्ति-भाव की, श्रध्दा की डोर एक हो सकती है तो एक कुटुंब की, क्यूँ नहीं?

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  4. सबने पहले ही कह दिया है की हमारे देश की साझा संस्कृति में इस तरह के नाम आम हैं. हमारे बरेली में चुनना मियाँ का मंदिर होता था - कभी लिखूंगा. जवले में जात्रा का स्वागत मुसलमान पटेल करते थे और लाहौर में लक्ष्मण किला में अभी भी मुसलमान रहते हैं.
    लेख अच्छा लगा!

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  5. mere jeevan ka bada hissa bhi aapke kasbe mein gujra hain. lekh padkar main nostalgic mahsoos kar raha hoon. dashhare ke vijayee julus ka muslim bhaion dwara swagat aur muharram ke tajiye mein hinduon ka mattha navanaa bachpan kee yaadon ke abhinn hisse hain. hamare desh ka tana-bana aapsee sauhard ke us mahin reshe se buna hai, jiski mazbooti bemisal hai. aao, hum saath-saath rahe aur sang chale. ...aapki bhavna aur lekh achchhe hain.

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